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नेता जी – हास्य कविता

मंथन- A Review
मंथन- A Review
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नेता जी
हास्य कविता

बहनों और भाईयों सुन लो
मेरी दरद भरी एक बात
तुम जैसा ही मानव हूँ मैं
नहीं दूजी कोई जात।

काका पार्टी से हूँ चाहे
या हूँ भाभा का दल
आपा का हूँ नया नवेला
या रहता दल-बदल।
जैसे तैसे करके जुगाड़
दे देता हूँ सबको मात
तुम जैसा ही मानव हूँ मैं
नहीं दूजी कोई जात।

हर कोई मुझपे जोक करे
जैसे हूँ कुर्सी का जोंक
कार्टून में मैं ऐसे दिखता
जैसे बैल रहा हो भोंक।
लोट पोट तुम सब हो जाते
करते हँस हँस मेरी बात
तुम जैसा ही मानव हूँ मैं
नहीं दूजी कोई जात।

चुनावी मौसम जब आ जाए
ए सी भी कर देता बेचैन
अंग्गारे किस पे बरसाऊँ
सोचता रहता हूँ दिन-रैन।
कोई तो मुझपे तरस खाओ
मत बरसाओ जूते और लात
तुम जैसा ही मानव हूँ मैं
नहीं दूजी कोई जात।

कोयला खाऊँ चारा खाऊँ
पर रोटी दाल न खाऊँ
यह भी मैं खा जाऊँ तो
तुमको सब कैसे दे जाऊँ?
जग हित ही तो मेरा हित है
सस्ता कर दिया दाल भात
तुम जैसा ही मानव हूँ मैं
नहीं दूजी कोई जात।

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यह मेरा निजी ब्लॉग है|

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