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यदि हम लीक से हट कर उस आयोजन को आयोजित करें तो… Jagran Contest

मंथन- A Review
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हिंदी दिवस पर ‘पखवारा’ के आयोजन का कोई औचित्य है या बस यूं ही चलता रहेगा यह सिलसिला?

यदि हम लीक से हट कर उस आयोजन को आयोजित करें तो, जी हाँ, बिलकुल हिंदी दिवस पर ‘पखवारा’ के आयोजन का औचित्य है

हिंदी दिवस पर मुख्यातिथि के रूप में आमंत्रित बहुत बड़े शख्स की रात बेचैनी में कट रही थी| कारण था- हिंदी दिवस पर भाषण|

अरे भाई, इसमें क्या ख़ास बात है? हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है और अपनी राष्ट्र भाषा पर बोलना कौन सा मुश्किल काम है?

हाँ ख़ास बात तो नहीं, और न ही मुश्किल पर एक कलाकार जो अक्सर यूरोपियन व अमेरिकन देशों की यात्रा पर रहता हो और इंग्लिश भाषा उसकी मातृभाषा जैसी हो तो हिंदी विषय पर, हिंदी भाषा में भाषण देना एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने से कम नहीं है|

इसीलिए रात को एक बजे वह उठ बैठा और अंतर्जाल पर हिंदी भाषा को खोजने लगा| वह हैरान भी हो रहा था कि अब ‘हिंदी’ की खोज हिंदी भाषा में भी हो सकती है| पर टुकड़ों को एक ही लड़ी में पिरोना भी उसके लिए कठिन था| हिंदी भाषा पढ़नी तो आती थी पर सभी शब्दों का अर्थ नहीं आता था क्योंकि इस से पहले वह हिंदी भाषा के हर कठिन शब्द का इंग्लिश में अनुवाद करके ही समझ पता था| लेकिन इतना समय नहीं बचा था कि वह यह सब कर पाता|

उसने घडी पर नज़र डाली| डेढ़ बजे थे| अमेरिका में समय का अनुमान लगाया कि वहाँ दोपहर साढ़े बारह का समय होगा और दोस्त को फोन लगाया| उस से अपनी परेशानी बांटी और मदद मांगी| मित्र भी शायद फुर्सत में था| उसने एक ही घंटे में भाषण तैयार कर दिया| मदद मिल गई| भाषण लिखा हुआ मिल गया तो चैन मिला व उसने राहत की सांस ली| अब नींद आ गई| रात को देर से सोने की वजह से सुबह देरी से उठा| हडबड़ाहट में प्रिंट निकाला|  मगर रोमन लिपि में| ऐसे ही लेकर पहुँच गए| जब पढ़ा तो लोग तालियाँ तो बजा रहे थे पर उनकी ‘बजा’ रहे थे|

आयोजकों की निंदा हुई कि हिंदी दिवस पर हिंदी का अपमान करवाया गया है| आयोजकों को भी गलती का अहसास हुआ| लेकिन मेरी नज़र में इसका एक दूसरा परन्तु महत्तवपूर्ण पहलू है कि इस घटना से बेशक केवल एक परन्तु ऐसे शख्स की सोच में बदलाव आया जो हिंदी बोलने के नाम पर नाक चढ़ा लेते थे| क्योंकि बाद में जब उन शख्स को अहसास हुआ तो उन्हें शर्मिंदगी भी महसूस हुई और स्वयं के ऊपर ग्लानि भी| उस के बाद उन्होंने हिंदी भाषा सीखी और उसका खूब प्रचार भी किया|

इस तरह से मेरे विचार में हिंदी दिवस सार्थक हुआ| वैसे तो अक्सर औपचारिकता ही पूरी की जाती है| आपका क्या विचार है?

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