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‘उत्सव’ ने तो अरमान दिल के सजा रखे हैं| Contest

मंथन- A Review
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चिराग 2‘हिंदी बाज़ार की भाषा है गर्व की नहीं’ या ‘हिंदी गरीबों, अनपढ़ों की भाषा बन कर रह गयी है’ – क्या कहना है आपका?

जो बिका वही सिकंदर!

हर तरफ बाज़ार की धूम है| जिसकी मांग अधिक उसी का मूल्य अधिक| जिसकी चर्चा अधिक उसी की मांग अधिक| जिसका प्रचार अधिक उसी की चर्चा अधिक| मगर प्रचार एक ऐसी प्रक्रिया है जो इच्छा शक्ति से उत्पन्न होती है इसलिए जिसके लिए इच्छा शक्ति अधिक उसी का प्रचार अधिक| यहाँ हम यह नहीं कह सकते कि जिसमें दम अधिक उसी का प्रचार अधिक| क्योंकि बहुत सी ऐसी उच्च गुणवत्ता वाली वस्तुएँ या सेवाएँ या कोई भी कार्य उस स्तर तक सर्वप्रिय नहीं बन सकते जितना उनमें दम होता है|

इस मामले में स्वामी विवेकानंद जी के योगदान को जितना प्रचारित किया जाये उतना कम है| उन्होंने विश्व के इतिहास में अमेरिका जैसे देश की संसद में हिंदी भाषा में भाषण दिया था| विश्व पटल हिंदी पटल बनने की राह पर चल सकता था यदि उस गौरवान्वित करने वाली घटना तो भुनाया जाता| पर, अफ़सोस की बात है कि भाषा के तथाकथित ठेकेदार अंग्रेजी में लिखने को अधिक तरजीह देने लगे| उनके विचार अंग्रेजी भाषा में बिकने लगे तो हिंदी भाषा से मोह भी समाप्त होने लगा|

इससे बड़ी विडंबना तो येह है कि फिर वही विचार व साहित्य जो मूलतः भारतीय लेखकों द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया, वापिस हिंदी में अनुवादित हो कर हिंदुस्तान में बिकने लगे| अब सवाल उठता है कि ऐसी स्थिति आई ही क्यों? इसका बड़ा स्पष्ट सा तर्क है – ‘घर की मुर्गी दाल बराबर’| हिंदुस्तान में हिंदी भाषा में लिखे विचारों को जब पहचान नहीं मिली और विदेशी भाषाओँ ने उन्ही विचारों का मान व दाम दिया तो भाषा बदल गयी| वह दौर आज तक चला आ रहा है कि नामी गिरामी पत्र-पत्रिकाएँ विदेशी भाषाओँ से अनूदित रचनाओं का अधिक सम्मान करती हैं| उन्हें अधिक जगह देती हैं क्योंकि यह मान लिया गया है कि हिंदी गरीबों, अनपढ़ों की भाषा बन के रह गयी है|

वास्तविकता यह भी है कि हिंदी जानने वालो की क्रय शक्ति क्षीण होती है| एक ही लेखक की एक ही विषय वस्तु पर प्रकाशित सामग्री यदि हिंदी भाषा में है तो कम मूल्यवान तथा यदि विदेशी भाषा में है तो अधिक मूल्यवान समझा जाता है| आयातित वस्तुएं अक्सर ब्रांडेड मानी जाती हैं साथ ही यह भी सत्य है कि भारतीय सिनेमा को अंग्रेजी के पटल पर अच्छी जगह मिल चुकी है तो क्या हिंदी भाषा को उदारीकरण व वैश्वीकरण की नीति के अंतर्गत विश्वपटल पर अपना तेज लहराने में कोई दिक्कत पेश आएगी?

बहरहाल, सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए भविष्य में उम्मीद की जा सकती है कि हिंदी भाषायी लेखकों व चिंतकों की कोशिशें इस दौर को पीछे छोड़ कर हिंदी भाषा को अंतर्राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिलाने में अहम् भूमिका निभाएंगी|

क्योंकि…

मुंडेरों पर चिराग हमने जला रखे हैं

अंधेरों ने तूफ़ान सारे बुला रखे है|

जो जीता है वही सिकंदर इसी जहाँ का

‘उत्सव’ ने तो अरमान दिल के सजा रखे हैं| …उषा तनेजा ‘उत्सव’

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