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क्या हिंदी सम्मानजनक भाषा के रूप में मुख्य धारा में लाइ जा सकती है? अगर हाँ, तो किस प्रकार? अगर नहीं तो, क्यों नहीं? Contest
पिछले दिनों मेरी सहेली ने मुझे बताया कि उसकी बेटी को उसकी स्कूल अध्यापिका ने दस रूपए का जुर्माना लगाया है| जब मैंने कारण पूछा तो उसने बताया कि वह स्कूल में अंग्रेजी की कक्षा में हिंदी भाषा में बातचीत कर रही थी| मुझे अटपटा सा लगा| मैंने उसकी बेटी ‘दिशा’ को बुलाया और उससे पूछा, “बेटे, क्या यह सच है कि हिंदी बोलने पर तुम्हें जुर्माना लगाया गया है?”
वह तपाक से बोली, “जी मासी! केवल मुझे ही नहीं मेरी चार और सहेलियों को भी लगाया है| मेरे अकेले का ही कसूर नहीं है| अब आप ही बताओ कि मम्मी मुझे डांट रही है तो इसमें मेरा क्या दोष है, क्योंकि हमारे घर में सब लोग अंग्रेजी बोलते ही नहीं|”
“हाँ, बिलकुल सही बात है जब तक घर में सब या फिर कोई भी दो सदस्य अंग्रेजी में बातें न करें तो बच्चे कैसे सीख सकते है?” मैंने उसकी बात को तवज्जो देते हुए कहा|
“सुन लो मम्मा!” अब तो आपको समझ आ गई होगी जो बात मेरे कहने से आप नहीं समझ रही थी|” वह अपनी माँ की तरफ मुखातिब होते हुए बोली और खेलने बाहर चली गयी|
अब बारी थी मेरी और मेरी सहेली रेखा (दिशा की माँ) के बीच बहस की|
“क्या उषा!” मैं तो कोशिश कर रही थी कि दिशा किसी तरह से स्वीकार कर ले कि उसे अपने आप ही कोशिश कर के अंग्रेजी सीखनी पड़ेगी और अब तो…” वह शिकायती लहजे में मुझसे कहने लगी|
और, मैं उस स्थिति के उलझे हुए गुच्छे को उलट पलट कर देख रही थी कि कहीं एक छोर मिले तो धीरे धीरे कर के उसे सुलझाते हुए दूसरे छोर तक पहुंचा जाये| पर, एक छोर अगर नज़र आ भी जाता था और मैं उसे खींच कर, लपेट कर गोला बनाने की कोशिश करती तो दूसरा टुकड़ा दिखाई दे जाता| दूसरा गोला लपेटती तो पहला फिर उलझ जाता और साथ ही तीसरा टुकड़ा दिखाई दे जाता|
यह स्थिति भी बिलकुल इसी तरह उलझी हुयी है और किसी एक परिस्थिति को ज़िम्मेदार ठहरा कर, उसे सुधार कर हल कर लेना इतना आसान नहीं है| अंग्रेजो द्वारा दो सो वर्षो तक हमारे देश व समाज पर राज किया गया है| देश की प्रभुसत्ता तो हमने वापिस ले ली पर अपनी मानसिकता को हम आज तक अपनी मर्ज़ी से गुलाम बनाये हुए हैं|
देश के सविधान में तो हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दे दिया गया| तो क्या केवल दर्जा दे देने से कर्त्तव्य का निर्वाह हो जाता है? सरकारी विभागों के सभी कार्यालयों में बड़े बड़े पोस्टर चिपका कर लोगो से अपील की जाती है कि हिंदी भाषा का प्रयोग किया जाये| परंतु, उनके अधिकतम दस्तावेजों पर अंग्रेजी अंकित होती है| ऐसे असंख्य उदहारण हैं जो सब जानते हैं| एक सबसे बड़ा उदाहरण – स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम को देखना, सुनना व देशभक्ति के जज्बे को आत्मसात करना हर भारतीय के लिए सम्मान की बात है| पर अफ़सोस कि वहाँ पर भी उद्बोधन अंग्रेजी में होता है|
एक दूसरा ऐसा ही उदाहरण संसद सत्र का| लोकसभा व राज्यसभा में भी ऐसा प्रावधान नहीं है कि सभी हिंदी भाषा का प्रयोग करें| एक क्लर्क या चपरासी के लिए अंग्रेजी बोलना/जानना अनिवार्य होता है पर नेता लोग जिन पर देश की साख टिकी होती है, उनके लिए राष्ट्रभाषा का ज्ञान अनिवार्य नहीं है| यह कैसी विडम्बना है?
अब अगर केवल ब्लॉग्गिंग, साहित्य, मीडिया या फिर हिंदी भाषा का विषय पढने वाले ही हिंदी का प्रचार प्रसार करेंगे तो फिर हिंदी को सम्मानजनक भाषा के रूप में मुख्य धारा में लाना संदेहास्पद है| यह तो तभी संभव है जब देश के नेता हिंदी भाषा के प्रति समर्पित हों और देशवासियों के मन में हिंदी के प्रति भक्तिभाव तथा आदरभाव जगाएं और प्रोत्साहित करें|
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