असंभव के विरुद्ध केवल ढीठ ही खड़ा रह सकता है। जिद्दी। बहुत जिद्दी। आप ही तो कहते हैं- ‘जिद्द करो, दुनिया बदलो’। दुनिया तो बदल ही रही है। बदलती भी जायेगी। फिर इस बदलती दुनिया में कहाँ रहें? क्या अब भी पीछे रहें? क्यों पीछे रहें? वे बराबर में चलना चाहती हैं। चलना भी चाहिए। पर दुनिया के पुरुष? उनकी मानसिकता कब बदलेगी? अपने आप तो शायद कभी नहीं बदलेगी। माँ स्वयं बराबरी का दर्जा चाहती रही है।लेकिन केवल चाहने से हुआ नहीं। होता भी कैसे? पुरुषों की मानसिकता भारी रही। वही माँ अब बेटी के साथ है। जो वह स्वयं नहीं कर सकी, अब बेटी को करने से नहीं रोकेगी। आगे बढ़ कर उसका साथ देगी।
इस समय बेटी की सुरक्षा न तो छोटे शहरों में है और न ही बड़े शहरों में। बाहर तो बाहर, बेटी तो घर के अन्दर भी सुरक्षित नहीं है। अपने रिश्तेदारों की भी नज़र उस पर रहती है। बुरी नज़र। उसके शरीर पर। या फिर अपनी पसंद के लड़के से शादी करने के बाद उसकी जान पर। इसीलिए तो वह घर से भाग कर पुलिस प्रोटेक्शन में रहती ह। वह कहाँ जाए? क्या जनम ही न ले? क्यों न ले? वह जनम लेगी। अवश्य लेगी। पुरुष बदलेंगें। पुरुषों की मानसिकता को बदलना होगा। माँ पति से बराबरी का दर्जा हासिल नहीं कर पाई तो क्या हुआ? बेटों को सिखाएगी। उन्हें लड़कियों के प्रति संवेदनशील बनाएगी।उसे बनाना ही होगा।
लड़कियां छोटे शहरों से हैं तो क्या हुआ? अब सारा आसमान उनका है। साड़ी ज़मीं पर उनका बराबर का हक़ है। सपने देखना उनका ख्वाब है। सपनों को पूरा करना उनका अधिकार है। पुरुष उनका रास्ता रोक नहीं सकते। बल्कि उनके लिए रास्ता छोड़ना होगा। पुरुषों को अपनी नज़र बदलनी होगी। उन्हें लड़की ‘भोग्या’ नज़र आती है तो उन्हें अपनी आँखों का इलाज करवाना होगा। कारगर ईलाज।
पुरुषों को सतर्क रहना होगा। उन्हें स्वयं पर नियंत्रण करना होगा। अपनी सोच को बदलना होगा। उन्हें वर्ष 2013 के बदलाव के लिए संकल्प लेना होगा की बेटी अब स्वतन्त्र है। स्वतंत्रता उसका जन्मसिद्ध अधिकार है। समानता उसका जन्मसिद्ध अधिकार है। अपनी पसंद की जगहों पर जाना, पढना, रहना उसका जन्मसिद्ध अधिकार है। अपनी पसंद के कपडे पहनना, अपनी पसंद के लड़के से शादी करना उसका जनम सिद्ध अधिकार है। ……………
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